स्कूल प्रिंसिपल संदेश

शिक्षा हमें बाध्य करती है कि हम सूचना-सागर की अतल गहराइयों में डुबकी लगा कर ज्ञान-कोष के अथाह भण्डार से उन तथ्यों को शोध कर लाएँ, जो कि अपरिपक्व और अपरिष्कृत होकर भी, व्यक्तिनिष्ठ और निजी मान्यताओं से जन्मी विरोधाभासी विवेचनाओं के बावजूद वर्तमान संस्कृतिक विन्यास में पुनर्नामित बौद्धिक-प्रभुता द्वारा ग्राह्य हो l जैसे कि भूसी के ढेर से चावल बीने जाते हैं और प्राप्त चावल विभिन्न रूपों में उपयोग में लाए जाते हैं, उसी प्रकार आत्मनिष्ठ अनुभवों के कारण एक ही सत्य को विभिन्न दृष्टिकोण, विविध रूपों में, परस्पर-भिन्न परिभाषाओं में प्रदर्शित करते हैं, किन्तु इससे सत्य का महत्व घट नहीं जाता l

वर्तमान वैश्विक संस्कृति की तिमिरभरी संकरी गुहाओं में भटकती, दुविधाग्रस्त हमारी आज की पीढ़ी जब अपने अस्तित्व की पहचान के लिए स्थान टटोल रही है, तथापि प्रवृत्ति यह है कि,”मैं ही सही हूँ l” तब शिक्षा के विवेकपूर्ण आलोक-दीप के माध्यम से ही सही राह के चयन की योग्यता प्राप्त की जा सकती है l शिक्षा-प्रक्रिया में सूचनाएँ ज्ञान-पथ की यात्रा करती हुई अंततः प्रज्ञा मंत निरुपित होती हैl

वर्तमान समाज में फ़ैली हठधर्मिता और निरंकुश व्यक्तिवाद से भ्रष्टाचार, हिंसा और असहिष्णुता की फिसलन के अलावा कहीं नही पहुँचा जा सकेगा l वास्तविक शिक्षा से प्राप्त आत्म-मंथन द्वारा ही समाज से प्राप्य ग्रहण करते हुए योगदान दिया जा सकता हैl जिस संसार में हम रह रहे हैं उसकी शांति एवं सम्पन्नता का केवल यही उपाय है कि स्वयं आत्म-बोध प्राप्त कर जाग्रत हो और दूसरों की क्षमताओं पर विश्वास रखें l आइए, इस मंच के माध्यम से हम स्वयं को प्रेरित करें : यदि कुछ प्राप्त करना हैं तो काम करें,यदि कुछ महान चाहते हैं तो अधिक परिश्रम करें, यदि कुछ असाधारण हासिल करना चाहते हैं तो अद्धभुत प्रयास और निर्लिप्तता अपेक्षित हैं, जिससे आप से कुछ लिए बिना ही संसार आनंदपूर्ण प्रज्ञा-भावना से परिपूरित दिखाई देगा, इस विश्वास से भरकर कि,”संसार अभी भी सुंदर हैl“